परिषद् का इतिहास

अवसर था, अखिल भारतीय दर्शन-परिषद् के 38वें अधिवेशन का, जो 18-20 मई 1994 ई० को मध्यप्रदेश का शिमला कही जाने वाली सतपुड़ा की रानीपचमढ़ी में आयोजित हो रहा था। यह आयोजन दर्शनशास्त्र विभाग, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर के तत्त्वाधान में दर्शनशास्त्र के मूल कहे जाने वाले अरण्य क्षेत्र में इसलिए भी अधिक प्रासंगिक था  क्योंकि ग्रीष्मकाल, पहाड़ों की वादियाँ और दर्शन के चिन्तन की त्रिवेणी अद्भुत दृश्य उपस्थित कर रहे थे । इस अवसर पर अविभाजित मध्यप्रदेश के लगभग सभी ख्यातनाम दार्शनिक उपस्थित थे। उपर्युक्त अवसर और दर्शन के अध्यापकों  की मानसिकता देखते हुए प्रो० छाया राय के मन में मध्यप्रदेश दर्शनपरिषद् के विचार का बीजारोपण हुआ। देखते ही देखते परिषद् का निर्माण हुआ जिसकी प्रथम अध्यक्ष प्रो० छाया राय तथा महामंत्री प्रो० सुरेन्द्र सिंह नेगी मनोनीत हुए। क्रमशः परिषद् के अधिवेशनों का सिलसिला चल पड़ा जो किसी अन्य अधिवेशन या संगोष्ठी से जुड़कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते थे।

 1011 जुलाई, 1999 को राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं मध्यप्रदेश दर्शन परिषद् का अधिवेशन भोपाल में हमीदिया महाविद्यालय द्वारा कराया गया था, जिसका केन्द्रीय  विषय ‘समकालीन परिदृश्य में दार्शनिकों की भूमिका’ था, जो प्रशासन अकादमी भोपाल में सम्पन्न हुआ था| इसका संयोजन डॉ. पी.के. खरे के द्वारा किया गया  था| इस अधिवेशन में प्रो. जी.पी. शुक्ल, डी.डी. बंदिस्टे, प्रो. . के. बैनर्जी, प्रो. बेंजामिन खान, प्रो. शकुन्तला सिन्हाप्रो. डी.एन. शुक्ल  प्रो. भगवंत सिंह तथा कई अन्य वरिष्ठ प्राध्यापक  उपस्थित हुए थे और इस  अधिवेशन में अत्यन्त वरिष्ठों को ‘दर्शन श्री के रूप में सम्मानित  किया गया  था। इस कार्यक्रम की रचना प्रो. छाया राय के निर्देशन में की गई थी| इस तरह 1999-2000 ई० में IPC (भारतीय दार्शनिक महासभा) के नई दिल्ली अधिवेशन में भी परिषद् ने एक अंतरिम सत्र आयोजित किया था। सन् 2000 ई० में मध्यप्रदेश का विभाजन हुआ और पृथक् छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया तब छत्तीसगढ़ के दार्शनिक आचार्यों ने यह निर्णय लिया कि छत्तीसगढ़ अविभाजित रूप से बौद्धिक एवं अकादमिक स्तर पर मध्यप्रदेश दर्शनपरिषद् के साथ रहकर अपना योगदान करेगा। इस प्रकार अ‌द्यावधि मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ एक ही दर्शन परिषद् के बैनर तले कार्य कर रहे  हैं। 2005 ई0 में दर्शन परिषद् (मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़) में एक ऐतिहासिक मोड़ आया जब इस परिषद् ने दर्शन के क्षेत्र में एक नया आयाम स्थापित किया । जबलपुर के शासकीय मानकुंवर बाई महिला महाविद्यालय में प्रथम स्वतंत्र अधिवेशन 5-6 मार्च 2005 0 को हुआ । इसे तत्कालीन अध्यक्ष डॉ० इन्द्रा वर्मा की प्रेरणा से सम्पन्न कराया गया जिसके सूत्रधार डॉ० ज्योति स्वरूप दुबे थे। वास्तव में 1994 से 2005 ई० तक इस  परिषद् का कोई भी स्वतंत्र अधिवेशन सम्पन्न नहीं हो सका था, क्योंकि परिषद् का पंजीयन नहीं हुआ था साथ ही इसे कोई भी अनुदान प्राप्त नहीं होता था। तत्पश्चात् अनेक प्रयासों से 2005 ई0 में इस अधिवेशन हेतु परिषद् को प्रथम अनुदान रुपये 35000.00 (पैंतीस हजार मात्र) भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् से प्राप्त हुआ, जिससे यह आयोजन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। इसी अधिवेशन में सर्वसम्मति से कार्यकारिणी में परिवर्तन कर प्रो० सुरेन्द्र सिंह नेगी को अध्यक्ष का दायित्व सौंपा गया। प्रो० छाया राय ने डॉ० ज्योति स्वरूप दुबे को महामंत्री बनाने हेतु प्रस्ताव रखा जो सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ।

 2006 ई० में डॉ० ज्योति स्वरूप दुबे ने अपने प्रयासों से इस परिषद् का विधिवत पंजीयन (जबलपुर) फर्म्स एण्ड सोसाइटिज में कराया जिसमें इस परिषद् का पंजीकृत नाम दर्शन परिषद् तथा इसका क्षेत्राधिकार मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ रखा गया। इसका पंजीयन क्रमांक 04/14/01/08825/06 है तथा पंजीयन कराने वाले संस्थापक सदस्य थे परम् आदरणीय प्रो० सुरेन्द्र सिंह नेगी (जबलपुर), डॉ० प्रियव्रत शुक्ल (जबलपुर), डॉ० ज्योति स्वरूप दुबे (जबलपुर), प्रो० दीपा पाण्डेय (ग्वालियर), डॉ० जे०पी० शाक्य (छतरपुर), डॉ० एस०पी० पाण्डेय (इन्दौर) तथा प्रो० इन्द्रा वर्मा (जबलपुर) परिषद् का प्रतीक चिन्ह, जिसमें अविभाजित मध्यप्रदेश का मानचित्र है, आर्ष वाक्य चरन् वै मधु विन्दति के साथ तत्कालीन महामंत्री प्रो० ज्योति स्वरूप दुबे  द्वारा प्रस्तुत और आम सभा द्वारा स्वीकृत किया गया। 2005 ई० के अधिवेशन में पढ़े गए शोध पत्रों के प्रकाशन हेतु तत्कालीन महामंत्री डॉ० ज्योति स्वरूप दुबे  के मन में यह विचार आया कि इनके प्रकाशन हेतु एक पत्रिका की व्यवस्था भी की जाए। अतः 2006 ई० में पारमिता वार्षिक पत्रिका ने आकार लिया जो अनवरत प्रकाशित हो रही है। ‘पारमिता’ नाम अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के तत्कालीन अध्यक्ष प्रो० एस०पी० दुबे ने सुझाया था। 2007 ई० में इस पत्रिका को आई.एस.एस.एन. 0975-2560 प्राप्त हुआ जिससे इसकी गरिमा में वृद्धि हुई। 2005 ई० के पश्चात् प्रतिवर्ष स्वतंत्र रूप से इस परिषद् के अधिवेशन सम्पादित हो रहे हैं। दर्शनानुरागियों ने उत्साहपूर्वक इसमें अपनी भागीदारी भी सुनिश्चित की है, आजीवन सदस्यता भी लिया है तथा प्रकाशन में सहयोग भी दिया है।

परिषद् द्वारा कुछ पुरस्कार दिए जाते रहे हैं जिनको सन् 2006-2007 ई० से सुनियोजित स्वरूप प्रदान किया गया दार्शनिक प्रतिभा सम्मान 2005 ई० के पूर्व भी प्रचलित था जिसे 2006 ई० से आयोजक महाविद्यालय / विश्वविद्यालय / विभाग के दार्शनिक रूप से जिज्ञासु छात्रों को दिया जाता है। परिषद् के कार्यक्रमों से आकर्षित होकर अनेक दानदाताओं ने अन्य अनेक पुरस्कारों एवं व्याख्यानमालाओं हेतु स्थायी निधि में राशि प्रदान की है। परिषद् का सर्वश्रेष्ठ आकर्षण दर्शन श्री पुरस्कार 2006 ई० से से ही प्रारम्भ हुआ जो मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के उल्लेखनीय दार्शनिकों को प्रतिवर्ष अनवरत रूप से दिया जाता है। डॉ० इन्द्रा वर्मा ने अपने पिता की स्मृति  में 2006 ई० सेयुवा चिन्तक पुरस्कार प्रारम्भ किया जो सर्वश्रेष्ठ शोध पत्र वाचक प्रतिभागी को दिया जाता था।  तत्कालीन महामंत्री डॉ० ज्योति स्वरूप दुबे  द्वारा अथक प्रयासों से परिषद् की वेबसाइट भी बनवायी गई जिसका अमरकंटक अधिवेशन में लोकापर्ण हुआ। इनके निर्देशन में वेबसाइट एवं पत्रिका का प्रकाशन सुचारू रूप से चलता रहा। तदुपरान्त ग्वालियर अधिवेशन में डॉ० सुरेन्द्र सिंह नेगी के स्थान पर डॉ० प्रियव्रत शुक्ल  ने अध्यक्ष पद संभाला। कुलपति बनने के पश्चात् डॉ० शुक्ल ने स्वेच्छा से पद त्याग कर दिया अतः डॉ० प्रियव्रत शुक्ल  के स्थान पर डॉ० दीपा पाण्डेय  को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी गई।

 2013 ई० के रीवा अधिवेशन में महामंत्री डॉ० ज्योति स्वरूप दुबे  के स्थान पर डॉ० पी०के० खरे  को महामंत्री का दायित्व प्राप्त हुआ। तत्पश्चात  डॉ० पी०के० खरे ने दो वर्ष में ही स्वास्थ्य कारणों से महामंत्री पद की जिम्मेदारी डॉ० जे०पी० शाक्य को दिया। इन्होंने कई अधिवेशनों का संचालन सफलतापूर्वक किया तथा इनके कार्यकाल में परिषद् को एक उपलब्धि भी प्राप्त हुई जिसके अन्तर्गत परिषद् का पंजीकरण नीति आयोग में डॉ० ज्योति स्वरूप दुबे के सहयोग से कराया गया। डॉ० दीपा पाण्डेय के पश्चात् डॉ० सुरेन्द्र सिंह नेगी को पुनः अध्यक्ष बनाया गया। राजनादगाँव अधिवेशन 2020 (सत्र 2019-2020 ई0) में महामंत्री डॉ० जे० पी० शाक्य ने व्यक्तिगत रूप से असमर्थता जाहिर की । फलस्वरूप महामंत्री पद की जिम्मेदारी प्रो० श्रीकान्त मिश्र को प्रदान की गई। महामंत्री का दायित्व प्राप्त होने के उपरांत  सत्र-2020-21 का आयोजन रीवा में किया गया इस अधिवेशन में महामंत्री प्रो० श्रीकान्त मिश्र ने यह अनुभव किया कि परिषद् में जो व्याख्यानमालाएँ तथा पुरस्कार हैं, उस हेतु धन की प्राप्ति व वितरण की विधि संतोषजनक नहीं है। कारण था कि व्याख्यानमालाओं अथवा पुरस्कारों के प्रवर्तक, से सम्बन्धित अधिवेशन में होने वाले व्यय की अपेक्षा की जाती थी और उनसे धनराशि प्राप्त होने की स्थिति में व्याख्यानदाताओं तथा पुरस्कारों के प्राप्तकर्ताओं को मानदेय / धनराशि प्रदान की जाती थी। इसे देखकर महामंत्री प्रो० श्रीकान्त मिश्र ने 2020-21 के रीवा अधिवेशन में यह प्रस्ताव दिया कि परिषद् में केवल उन्हीं व्याख्यानमालाओं तथा पुरस्कारों का संचालन किया जाएगा जिनके लिए स्थाई निधि (एक मुश्त) जमा हो और इनका संचालन उस स्थाई निधि के ब्याज से किया जाएगा। इस प्रस्ताव को आमसभा ने सर्वसम्मति से अनुमोदित किया |

कोरोनाकाल सन् 2021 में परिषद् के अध्यक्ष प्रो० एस०एस० नेगी जी का आकस्मिक निधन हो गया तत्पश्चात  सत्र 2021-22 का अधिवेशन  रीवा में सम्पादित हुआ | इसके पश्चात् सत्र 2022-23 में प्रो० भरत तिवारी अध्यक्ष, दर्शन परिषद् (म.प्र. एवं छ.ग.) के संयोजकत्व में रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर में परिषद् का 18 वाँ अधिवेशन सम्पन्न हुआ। इस बीच निरन्तर ‘पारमिता’ का प्रकाशन तथा धारा 27-28 में समिति का नवीनीकरण किया जाता रहा है। सत्र 2023-2024 में प्रो० बी०के० पटेल प्राचार्य,नवीन शासकीय महाविद्यालय नवागढ़, जनपद- जाँजगीर, चाँपा (छ.ग.) के संयोजकत्व में परिषद् का 19 वाँ अधिवेशन सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ |

वर्तमान महामंत्री ने यह प्रयास किया है कि परिषद् में अधिकाधिक वित्तीय लेन-देन ऑनलाइन माध्यम से हो। यद्यपि पूर्व के पदाधिकारियों ने परिषद् के सदस्यों की संख्या बढ़ाने का सुकृत्य किया है तथापि वर्तमान महामंत्री ने अपने व्यक्तिगत प्रयासों से अनेक राज्यों के दर्शनानुरागियों को परिषद् का आजीवन सदस्य बनाने में सफलता प्राप्त की है इस कारण विगत दो-तीन वर्षों में सदस्य संख्या की अप्रत्याशित वृद्धि परिलक्षित होती है । सत्र 2024-25 में महासचिव प्रो० श्रीकांत मिश्र, अध्यक्ष दर्शन विभाग, अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा के संयोजकत्व में परिषद् का 20वाँ अधिवेशन संपन्न हुआ | पूर्व में परिषद् का वेबसाइट कार्यरूप में प्राप्त नहीं हो सका, इसलिए प्रो.श्रीकांत मिश्र ने परिषद् के उत्तरोत्तर वृद्धि के क्रम में   कार्यकारिणी की सहमति से परिषद् हेतु नये वेबसाइट निर्माण हेतु डॉ. आशुतोष कुमार सिंह, अतिथि विद्वान, शासकीय ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय, रीवा को सौंपी | अथक प्रयास के उपरान्त सत्र 2024-2025 के रीवा अधिवेशन में अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति ने नये वेबसाइट को लांच किया |